There used to play a serial on DD in the days back then. It was called "Phir wohi talaash". It was about some village boy (Narender, if i recall correctly) coming to Delhi for college and falling in love with a city girl (Padma...this i know for sure coz the the name sucked. No offense, but i just don't particulary like it) . Anyways.
I didn't fancy the serial as much as my parents did, but the title song stuck in my head.
It's only when i grew up that i realise the meaning of the title song and its relevence.
This is how it went.
कभी sss , हादसों की डगर मिले,
कभी sss मुश्किलों का सफर मिल|
(repeat)
ये चिराग हैं मेरी राह के;
मुझे मंजिजों की तलाश है|(२)
Then the serial continued for about half an hour (don't recollect if there were ad breaks in between, but i am guessing not. Those were the days!)
When the serial ended, the second stanza, which was even more compelling, continued.
कोई हो सफर में जो साथ दे,
मैं रुकुं जहाँ, कोई हाथ दे|
मेरी मंजिलें अभी दूर हैं;
मुझे रास्तों की तलाश है| (२)
I didn't fancy the serial as much as my parents did, but the title song stuck in my head.
It's only when i grew up that i realise the meaning of the title song and its relevence.
This is how it went.
कभी sss , हादसों की डगर मिले,
कभी sss मुश्किलों का सफर मिल|
(repeat)
ये चिराग हैं मेरी राह के;
मुझे मंजिजों की तलाश है|(२)
Then the serial continued for about half an hour (don't recollect if there were ad breaks in between, but i am guessing not. Those were the days!)
When the serial ended, the second stanza, which was even more compelling, continued.
कोई हो सफर में जो साथ दे,
मैं रुकुं जहाँ, कोई हाथ दे|
मेरी मंजिलें अभी दूर हैं;
मुझे रास्तों की तलाश है| (२)
कभी हादसों की डगर मिले
ReplyDeleteकभी मुश्किलों का सफ़र मिले
ये चिराग हैं मेरी राह के,
मुझे मंजिलों की तलाश है!
मेरी जिन्दगी में रहा ही क्या
जिसे देखने का जूनून हो
जहां मंजिलें ही नहीं कोई
उन्ही मंजिलों की तलाश है!
जिन्हें डूब जाने का खौफ हो
वो अपने घर से चले ही क्यों
करे आँधियों का वो ही सामना
जिन्हें साहिलों की तलाश है!
हुई बारिशें तो जमीन का
कोई टुकडा यूँही भीग गया
मुझे दिए हैं जो नसीब ने,
उन्ही पत्थरों की तलाश है!
जिसे हर जगह पर छाँव मिली
वो पत्तियाँ ना कभी भी हरी हुई
उसे धूप मिलनी ही चाहिए
जिसे बादलों की तलाश है!
कोई हो सफ़र में जो साथ दे
मैं रुकूँ जहाँ, कोई हाथ दे
मेरी मंजिलें अभी दूर हैं
मुझे फिर वोही तलाश है!
👌💯
Delete🙏
बेहतरीन ग़ज़ल..... इसके रचनाकार का नाम बता सकेंगे-???
ReplyDeletebadhiya ghazal..... iske rachnaakaar kaa naam bataa sakenge-????
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